इश्क़ ए बिस्मिल - 6

  • 4.7k
  • 2.3k

बोलना था ना लफ़ज़ों मे तोलना था ना इस ख़मोशी से तो भली ही रहती ये दूरियाँ तो टली ही रहती उसने साहिर को खा जाने वाली नज़रों से देखा था। वह हिम्मत जुटा कर ख़ुद से खड़ी हुई थी, गुस्से और अफ़सोस की मिली-जुली कैफ़ियत में उसने उससे कहा था "यह तुम ने क्या किया साहिर? आख़िर क्यूं किया ऐसा? तुम्हें समझ क्यूं नहीं आता कि मैं तुम से मोहब्बत नहीं करती हूं। तुम समझ क्यूं नहीं जाते? वह रोते हुए कह रही थी। साहिर के सभी दोस्त जो उसके साथ वहां मौजूद थे वह भी थोड़ी दूरी पर