इश्क़ ए बिस्मिल - 1

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तेरा इंतज़ार!है फ़र्ज़ जैसा मुझ पेगर मुलाक़ात रद हुईतो ये इबादत मुझ पे क़र्ज़ हुई।ये क़ज़ा मैं कैसे चुकाउंगी?तेरी रज़ा मैं कैसे पाउंगी?लगभग तीन घंटों से उसका कमरा अजीबो-ग़रीब नक्शा पेश कर रहा था। कमरे की हालत देखकर ये जान पाना मुश्किल हो रहा था कि यह उसे बिगाड़ने की कोशिश थी या उसे संवारने कि जद्दोजहद।बेड पे लगभग पूरा कमरा उन्डेला हुआ था। अलमारी के सारे कपड़े फैले हुए थे, कुछ किताबें थीं, कुछ पैकेट्स, कुछ खिलौने , कुछ boxes और उनमें बसी ढेर सारी यादें। यह उसके रोज़ का मआमूल सा बन गया था। यादों को उधेड़ना और