हडसन तट का ऐरा गैरा - 19

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सुबह- सुबह हडसन नदी के किनारे टहल कर रॉकी जो ताज़े मुलायम घोंघे एक खुशबूदार पत्ते में रख कर लाया था उन्हें ऐश को देते हुए बोला - क्या बात है? तुम सुबह - सुबह इतनी खोई - खोई उदास सी क्यों लग रही हो? - रॉकी, मैं कुछ सोच रही हूं। - जो कुछ सोचा है वो झटपट मुझे बता दे। केवल सोचते रहने से बातें फलित नहीं होती हैं! - वाह! आज तो सुबह- सुबह बड़ा दर्शन झाड़ रहा है, किससे मिलकर आया है? - किससे मिलूंगा? मेरा है ही कौन। - क्यों, आज कैटी नहीं मिली क्या?