40 ----- एक दिन माँ के पास सदाचारी का गुर्राता सा फ़ोन आया | माँ ने ही रिसीव किया | |'यही है मेरी दयादृष्टि का फल ?" माँ पता नहीं क्यों उनसे इतनी भयभीत रहती थीं | पंडित जी वो भी सदाचारी ! यदि कहीं श्राप दे देते तो ? कितना अपशकुन था पूरे परिवार के लिए ! "पंडित जी मेरी तो ---" माँ बोलते हुए कैसी लड़खड़ा रही थीं | "क्या मेरी तो ---क्या लच्छन दिए हैं अपनी लाड़ली को ---आख़िर आप लोगों ने समझ क्या रखा है ? सबको देख लूँगा | ये विद्या है कोई मज़ाक नहीं