जी हाँ, हम लोग उन्हें बड़े गुरूजी ही कहते थे। तब हम कक्षा तीसरी के विद्यार्थी थे जब हम उन्हें पहचानने लगे थे। लंबा कद, कठोर अनुशासन के पक्षधर, चेहरे से मुस्कान तो जैसे हमेशा कोसों दूर रहती हो ऐसे सख्त अध्यापक की छवि लिए हुए वह हमारे विद्यालय के मुख्याध्यापक थे।यूँ तो मैं कक्षा दूसरी भी उसी विद्यालय से उत्तीर्ण हुआ था, लेकिन दूसरी कक्षा में ज्यादा नहीं पढ़ सका था। उसकी वजह थी। शैक्षणिक सत्र 1971-72 के लिए जनवरी 1972 में मेरा दाखिला दूसरी कक्षा में हुआ था। उन दिनों विद्यालयों में दाखिले के लिए किसी प्रमाणपत्र की