लाश ने आंखें खोल दीं।ऐसा लगा जैसे लाल बल्ब जल उठे हों।एक हफ्ता पुरानी लाश थी वह कब्र के अन्दर, ताबुत में दफन !सारे जिस्म पर रेंग रहे गन्दे कीड़े उसके जिस्म को नोच-नोचकर खा रहे थे।कहीं नर कंकाल वाली हड्डियां नजर आ रही थीं तो कहीं कीड़ों द्वारा अधखाया गोश्त लटक रहा था--- कुछ देर तक लाशउसी 'पोजीशन' में लेटीरही, फिर लाल अंगार जैसे आंखों से ताबूत के ढक्कन को घूरती रही।फिर!---सड़ा हुआ हाथ ताबूत में रेंगा- मानो कुछ तलाश कर रहा हो अचानक हाथ में एक लकड़ी नजर आई और फिरलेटे-ही-लेटे उसने लकड़ी से ढक्कन के पिछ्ले हिस्से