38 ----- दिन ढले से लेकर रात बढ़ बजे तक भानुमति मि.दीवान के साथ व्यस्त रही | सारे संदेह धीरे-धीरे पुष्टि जा रहे थे | दीवान जी के साथ बैठकर धीरे-धीरे सारी बातें उसकी समझ में आ गईं थीं | उनकी सहायता से उसने बहुत सी गुत्थियाँ सुलझा लीं थीं | वह तो पहले ही समझ रही थी और बात स्पष्ट हो गई कि यह सब सक्सेना और धूर्त पंडित जी की मिली भगत थी | पुराने लोगों को निकालकर नई भर्तियों के लिए कमीशन खाना उनका शगल बन गया था | अब भानु को पूरी तरह समझ में आ