फागुन वाली धूप रामलखन शर्मा

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समीक्षा                       फागन वाली धूप की संवेदना                                      रामगोपाल भावुक          दोहे लिखने की परम्परा हिन्दी साहित्य में हिन्दी के विकास के साथ ही आ धमकी थी। भक्तिकाल में आकर तो यह परम्परा पूर्णरूप से पल्लवित हुई है। भक्ति काल में जायसी,कबीर जैसे कवियों ने तो दोहों की ऐसी छाप छोड़ी है कि जन जन में समाहित हो गई है। रीतिकाल में भी बिहारी ने सतसई लिखकर सतसई परम्परा का चलन शुरू किया था। रामचरित मानस में तो अधिकतर दोहे और चैपाइयाँ ही हैं। आज लोग मुहावरों और लोकोक्तियों में मानस के दोहों का प्रयोग करते