पूरे 10 साल बाद 24 अक्टूबर को मैं आगरा पहुंचा था।पहली बार मे अकेला आया और अपनी प्रथम नियुक्ति पर आया था।न यहां मुझे कोई जानता था ,न ही कोई रिश्तेदारी तब मुझे अचानक निरोति लाल चतुर्वेदी का ख्याल आया।मैने ट्रेन से उतरते ही उनके बारे में पूछा तो मुझे पार्सल में जाने को कहा।वहां उनका नाम लेते ही बाबू ने मुझे बैठाया था।चाय पिलाई और जब नौ बजे निरोति लाल जी आये तो मुझे देखते ही खुश हो गए।पार्सल आफिस के ऊपर रिटायरिंग रूम था।उसमें मुझे ले गए और वहाँ रहने के लिए कहा।घर से खाना मंगाकर मुझे खिलाया