समुंदर प्रकृति की एक अनुपम भेंट है इस संसार का, पृथ्वी का तीन तिहाई भाग जिसके अधीन हो उस स्वयंभू पर चिंतन मनन और मंथन न हो तो हमारा अध्यात्मिक साहित्यक और भौतिक विकास हो हीं नहीं सकता है और संभवतः यही कारण रहा होगा जब देव और असुर दोनों ने मिलकर समुंद्र मंथन किया। समुंदर जो हर गुण-रस का आगर है उस आगर को समझने के लिए उसके संपदा को पाने के लिए देव असुर कच्छप सर्प राज वासुकी पक्षी राज गरुङ सब को अपनी भूमिका निभानी पङी समुंद्र मंथन में और उस मंथन का पहला रस कालकूट विष