मुझ से ज़ियादा कौन तमाशा देख सकेगा गाँधी-जी के तीनों बंदर मेरे अंदर – नाज़िर वहीद का ये शेर मेरे जिंदगी का अहम किरदार है एक सफर जो ज़ारी है बेमन सा बैठा ख्यालों में गुम था, टेबल पर रखी चाय न जाने कब कोल्ड टि बन गई , अभी बस कुछ दिन पहले तक तो सब ठीक था ये अचानक से सब कुछ उथल पुथल कैसे हो गया , इन ही ख़यालो में खोया था तभी कानों में रोने की आवाज़ आई तो निंद्रा टूटी तो मैं सन्न रह गया देखा तो पिता जी आँखों से आंसू गिर रहे