सुबह गोपाल की नींद खुली। उसने अपने आसपास का जायजा लिया। यह एक छोटा सा कमरा था जिसके बीचोंबीच एक पलंग बिछी हुई थी। पहली नजर में कमरा तो साफसुथरा नजर आ रहा था लेकिन दीवारों पर खूंटियों के सहारे बहुत सी अजीब अजीब चीजें टंगी हुई थीं। कपडे की कई पोटलियाँ भी खूँटीयों पर टंगी हुई थीं। साइकिल के दो पहिए भी एक तरफ दीवार की शोभा बढ़ा रहे थे। कमरे की यह हालत देखकर एक बार तो गोपाल को बरबस हँसी आ गई, लेकिन अगले ही पल उसे भान हुआ कि वह देहात के एक घर के एक