ममता की परीक्षा - 44

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परबतिया अभी दालान पार भी नहीं कर पाई थी कि उसी समय साधना आंगन से निकल कर दालान में आ गई। परबतिया हाथ में पकड़े डंडे के सहारे वहीँ खड़ी हो गई। साधना को देखते ही प्यार से बोली, " खाना बन गया बेटी ? मैं तेरे पास ही आ रही थी।" साधना ने बड़ी शालीनता से जवाब दिया, "जी काकी ! लगभग तैयार ही समझो। अभी सब्जी की कढ़ाई चुल्हे से उतारकर ही आ रही हूँ। बाबूजी खाने बैठें तो गरम गरम रोटियाँ सेंक दूँ।" दो पल की खामोशी के बाद उसने बड़े अपनेपन से परबतिया से पूछा, "मुझसे