आँख की किरकिरी - 26

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(26) पहले तो कोई जवाब न मिला। फिर आवाज दी- कौन है? इस पर महेंद्र चुपचाप कमरे में आया।  आशा खुश तो क्या होती, महेंद्र की लज्जा देख कर लज्जा से उसका हृदय भर गया। अब महेंद्र को अपने घर में ही चोर की तरह आना पड़ा है। ज्योतिषी जी और उनकी बहन के रहने से उसे और भी शर्म आई। दुनिया-भर के सामने अपने स्वामी के लिए लाज ही आशा को दु:ख से बड़ी हो उठी थी। और अब राजलक्ष्मी ने धीमे से कहा - बहू, पार्वती से कह दो, महेंद्र का खाना लगा दो, तो आशा बोली -