(25) उसी गंभीर भाव से सिलाई करती हुई विनोदिनी बोली - भाई साहब, तुम यहाँ नहीं रहोगे। अपने उठते हुए आग्रह पर चोट पा कर महेंद्र व्याकुल हो उठा। गदगद स्वर में बोला - क्यों, तुम मुझे दूर क्यों रखना चाहती हो? तुम्हारे लिए सब-कुछ छोड़ने का यही पुरस्कार है? विनोदिनी - अपने लिए मैं तुम्हें सब-कुछ न छोड़ने दूँगी। महेंद्र कह उठा- अब वह तुम्हारे हाथ की बात नहीं - सारी दुनिया मेरी चारों तरफ से खिसक पड़ी है - बस, एक तुम हो - तुम विनोद... कहते-कहते विह्वल हो कर महेंद्र लौट पड़ा और विनोदिनी के पैरों को