आँख की किरकिरी - 19

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(19) आशा ने उनके चरणों की धूल ली। बोली - आशीर्वाद दो मौसी! ऐसा ही हो।  आशा लौट आई। रूठ कर विनोदिनी ने कहा - भई किरकिरी, इतने दिन पीहर रही, खत लिखना भी पाप था क्या?  आशा बोली - और तुमने तो लिख दिया जैसे!  विनोदिनी - मैं पहले क्यों लिखती, पहले तुम्हें लिखना था।  विनोदिनी के गले से लिपट कर आशा ने अपना कसूर मान लिया। बोली - जानती तो हो, मैं ठीक-ठीक लिख नहीं पाती। खास कर तुम-जैसी पंडिता को लिखने में शर्म आती है।  देखते-ही-देखते दोनों का विषाद मिट गया और प्रेम उमड़ आया। विनोदिनी ने