आँख की किरकिरी - 13

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(13) काशी से लौट कर महेंद्र ने आशा को जब मौसी के भेजे गए स्नेहोपहार - एक सिंदूर की डिबिया और सफेद पत्थर का एक लोटा - दिए, तो उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। मौसी का वह स्नेहमय धीरज और उन पर अपनी तथा सास की फजीहतों की बात याद आते ही उसका हृदय व्याकुल हो उठा। उसने महेंद्र से कहा - बड़ी इच्छा हो रही है कि एक बार मैं भी काशी जाऊँ और मौसी की क्षमा तथा चरणों की धूल ले आऊँ। क्या यह मुमकिन नहीं?  महेंद्र ने आशा के मन की पीड़ा को समझा और इस