(12) और वह कमरे से बाहर चला गया। और दूसरे ही क्षण फिर अंदर आया। आ कर विनोदिनी से कहा - मुझे माफ कर दो! विनोदिनी बोली - क्या कुसूर किया है तुमने, लालाजी? महेंद्र बोला - तुम्हें यों जबरदस्ती यहाँ रोक रखने का हमें कोई अधिकार नहीं। विनोदिनी हँस कर बोली - जबरदस्ती कहाँ की है? प्यार से सीधी तरह ही तो रहने को कहा - यह जबरदस्ती थोड़े है। आशा सोलहों आने सहमत हो कर बोली - हर्गिज नहीं। विनोदिनी ने कहा - भाई साहब, तुम्हारी इच्छा है, मैं रहूँ। मेरे जाने से तुम्हें तकलीफ होगी- यह तो