(9) तपी दोपहरी की हवा पत्तों में मर्मराहट ला कर बहती रही, तालाब के बाँध पर जामुन की डालों पर कोयल रह-रह कर कूकती रही। विनोदिनी अपने बचपन के किस्से सुनाने लगी - माँ-बाप की बात, छुटपन की सखी-सहेलियों की चर्चा। अचानक उसके माथे पर का पल्ला खिसक पड़ा। विनोदिनी की आँखों में कौतुक का जो तीखा कटाक्ष देख पैनी निगाहों वाले बिहारी के मन में आज तक तरह-तरह की शंकाएँ उठती रही थीं, वह श्याम चमक जब एक शांत सजल रेखा से मंद पड़ गई, तो बिहारी ने मानो और ही नारी को देखा। लजीली सती की नाईं विनोदिनी