आँख की किरकिरी - 5

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(5) किसी पड़ोसी के पिंजरे की कोयलिया कूक उठी। महेंद्र ने उसी दम अपने सिर पर झूलते हुए पिंजरे को देखा। अपनी कोयल पड़ोसी की कोयल की बोली चुपचाप कभी नहीं सह सकती- आज वह चुप क्यों है?  महेंद्र ने कहा - तुम्हारी आवाज से लजा गई है।  उत्कंठित हो कर आशा ने कहा - आज इसे हो क्या गया।  आशा ने निहोरा करके कहा - मजाक नहीं, देखो न, उसे क्या हुआ है?  महेंद्र ने पिंजरे को उतारा। पिंजरे पर लिपटे हुए कपड़ों को हटाया। देखा, कोयल मरी पड़ी थी। अन्नपूर्णा के जाने के बाद खानसामा छुट्टी पर चला