जो हमारा हमारें समुचित अस्तित्व से जुड़ाव हैं चाहें हमारा वह अस्तित्व हमारी वास्तविकता यानी शून्य हो या फिर जो संकुचितता के महत्व के ज्ञान के परिणाम स्वरूप उसे किसी समय और स्थान तथा उचितता के अनुकूल होने पर संकुचितता को स्वीकार लेने पर जो यथार्थ सिद्ध होता हैं वह हमारा अज्ञान अर्थात्...