अपने पिता के बारे में कुमुद का प्रश्न सुनते ही तिलक ने तुरंत ही कहा, "नहीं-नहीं, हैं वह इस दुनिया में हैं लेकिन मुझे अपना बेटा नहीं मानते।" "लेकिन क्यों?" "जानना चाहती हो?" तभी ट्रे में चाय की दो प्याली लेकर रागिनी वहाँ आ गई। वैसे भी बेचैन रागिनी कान लगा कर उनकी बातें सुन रही थी। जानना चाहोगी सुनते ही रागिनी के तो होश ही उड़ गए। रागिनी का हाथ ट्रे पकड़े हुए काँप रहा था। उन्होंने टेबल पर चाय रखते हुए कहा, "तिलक अंदर आओ।" "नहीं माँ " "तिलक शांत रहो, तुम कुछ नहीं बोलोगे।" कुमुदिनी दंग होकर