पूरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज रहा था। ना जाने कितने ही हाथों में रुमाल थे जो अपनी आँखों से बहते आँसुओं को पोंछते-पोंछते अपनी क्षमता खो चुके थे, पूरे भीग चुके थे। तभी स्टेज के पीछे से आवाज़ आई, " बहुत-बहुत धन्यवाद, इस नाटक के लेखक थे तिलक रागिनी गुंजन।" यह नाम सुनते ही वीर प्रताप के होश उड़ गए, उनके हाथ में जो पानी का गिलास था वह उनके हाथ से छूट कर ज़मीन पर गिर गया और उस गिलास का पानी उनका कुर्ता गीला कर गया। उस गीले कुर्ते पर उनकी आँख से कुछ आँसू टपक