तिलक की नाराज़ी देख कर रागिनी ने उसे समझाते हुए कहा, "नहीं-नहीं तिलक तुम मुझे वचन दो कि तुम कभी उस तरफ नहीं जाओगे जहाँ से उसके घर का रास्ता मिलता है। कभी उसके जीवन में कोई हस्तक्षेप नहीं करोगे।" "माँ आप यह कैसा वचन मांग रही हो मुझसे? उसे उसकी ग़लतियों का एहसास तो कराना ही पड़ेगा। जिस ने मेरी नानी की जान ले ली, जिसने मेरी माँ को घुट-घुट कर जीने के लिए छोड़ दिया, जिसने मुझसे पिता का साया छीन लिया, उसके लिए आप वचन मांग रही हो?" "तिलक जो बीत गया उसके पीछे भागने से अच्छा