घुटन - भाग ८ 

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दरवाज़े के बाहर खड़े रागिनी के पिता यह सब सुनकर बरसों से अपनी आँखों में थमे हुए आँसुओं को आज रोक नहीं पाए। जिन आँसुओं को उन्होंने आज से पहले कभी आँखों से बाहर आने की इजाज़त ही नहीं दी थी; अपनी बेटी की हिम्मत बँधाने के लिए इतने वर्षों से यह आँसू उनकी कैद में थे। लेकिन आज वह आज़ाद हो चुके थे और वर्षों से भरी हुई आँखों को हल्का कर रहे थे। आँखों के साथ ही आज उनका मन भी हल्का हो रहा था क्योंकि कहीं ना कहीं उन्हें भी यह चिंता खाये जा रही थी कि