पेशी नम्बर 68 - 2

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- यह लड़ाई केवल एक हरदेव सिंह की नहीं है,न जाने कितने ईमानदार हरदेव सिंह बेईमान और भ्रष्टाचारों की बलि का बकरा बन जाते हैं। मैं उन सभी ईमानदार ऑफिसर की तरफ से....... " अचानक से यशोदा अपनी कुर्सी से खड़ी होती है।पूरा खड़ा होने से पहले ही लड़खड़ा जाति है।और उसका एक हाथ हर्षवर्धन बाबू के सामने रखे पानी के गिलास से टकराता है। गिलास नीचे गिरता है। आधा पानी वकील बाबू की गोद में और आधा फर्श पर बिखर जाता है कांच का गिलास भी टूट कर बिखर जाता है। जितने भी व्यक्ति ऑफिस में मौजूद होते हैं।