मरजानी

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[ कहानी -- मरजानी ]"ऐ मरजानी ! उठ कब तक पड़ी रहेगी, जा काम पर निकल अपना यह मनहूस मुँह लेकर" ।सुबह-सुबह दादी के कटु वचन सुनकर मरजानी का माथा गर्म हो गया और हो भी क्यों न , वह उसे इंसान समझती ही कहाँ थी ।जानवरों की तरह काम लेना,दुत्कारना,फटकारना और यहाँ तक कि मारना भी ।मरजानी ने गुस्से से फुकारते हुए कहा--"कुछ पेट में दो दाने पड़ेंगे तभी शरीर भी काम करेगा न, है कुछ खाने के लिए कि नहीं " ?"है पर तेरे लिए नहीं है ।खाने के लिए भी कूड़े करकट में ही मिल जायेगा