विविधा - 1

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यशवंत कोठारी 1-कवियों-शायरों की होली बात होली की हो और कविता, शेरो-शायरी की चर्चा न हो, यह कैसे संभव हैं ? होली का अपना अंदाज है, और कवियों ने उसे अपने रंग में ढाला है। जाने माने शायर नजीर अकबराबादी कहते हैं:   जब फागुन रंग झमकते हों, तब देख बहारें होली की।  और दफ के शोर खड़कते हों, तब देख बहारें होली की।   परियों के रंग दमकते हों, तब देख बहारें होली की।   महबूब नशे में छकते हों, तब देख बहारें होली की   कपड़ों पर रंग के छींटों से खुशरंग अजब गुलकारी हो।   मुंह लाल, गुलाबी आंखें हों, और हाथों