पांचवीं बेटी

  • 4.4k
  • 1.6k

कहानी पाँचवीं बेटी"आप एक बार फिर सोच लेते भाभीसा," दया ने आंगन में लगे झूले पर बैठते हुए कहा।"इसमें सोचणा के है दया, जो एक बार तय कर लेव थारा भभीसा तो फेर पाछे पाँव ना धरै....पूरी जिन्दगी बीत गई , तूं अब तक समझा ही ना....मनै...." रेवती ने शांति से कहा।"जाणु हूँ थान,थारी छाती न और धणो लखदाद भी देवूं हूँ ।पण फेर भी आ बात तो बिल्कुल ही अलग है भाभीसा," दया बालों को धीरे - धीरे सहलाता हुआ बोला।"तूं फिकर ना कर दया, माताराणी सब ठीक करगी। तूं बस....कागज- पतर बनवा दे, बाकी सब मैं संभाल लुँगी"