बंद खिड़कियाँ - 11

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अध्याय 11 एक क्षण धक से रह गई फिर सरोजिनी अपने आप को संभाल कर मुस्कुराई। "अंदर आओ बेटी" प्रेम से बोली तो श्यामला संकोच से अंदर आई। बैठने को बोले तो बड़े संकोच से सोफे के किनारे पर बैठी। उसका संकोच उसका स्वभाव है ऐसा सरोजिनी ने सोचा। बड़े घर वालों से छोटे घर वालों को होने वाला संकोच उसने सोचा। खाने के हॉल से उसने रसोई की तरफ देखा। मुरुगन अपने रोज के काम में लगा हुआ था। उन्हें देखते ही तुरंत खड़ा हो गया। "क्या चाहिए बड़ी अम्मा?" पूछा। "एक के लिए थोड़ा कॉफी और नाश्ता लेकर