एक था ठुनठुनिया - 25

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25 स्कूल का वार्षिक उत्सव धीरे-धीरे समय आगे बढ़ा। ठुनठुनिया अब बारहवीं कक्षा में था और बड़ी तेजी से बोर्ड की परीक्षा की तैयारी में जुटा था। अब वह पहले वाला ठुनठुनिया नहीं रह गया था। उसमें गजब का आत्मविश्वास आ गया था। उसने तय कर लिया था कि ‘मंजिल पाकर दिखानी है। तभी मेरी माँ को सुख-शांति मिलेगी। जीवन-भर इसने इतने कष्ट झेले, कम-से-कम अब तो कुछ सुख के दिन देख ले।’ इसी बीच एक दिन हैडमास्टर साहब ने ठुनठुनिया को बुलाया। कहा, “ठुनठुनिया, अगले महीने स्कूल का सालाना फंक्शन होना है। मुख्य अतिथि होंगे कुमार साहब! वे यहाँ