10 स्कूल में दाखिला ठुनठुनिया का नाम तो चारों ओर फैल रहा था, पर उसकी शरारतें और नटखटपन भी बढ़ता जा रहा था। ठुनठुनिया की माँ गोमती कभी-कभी सोचती, ‘क्या मेरा बेटा अनपढ़ ही रह जाएगा? तब तो जिंदगी-भर ढंग का खाने-पहनने को भी मोहताज रहेगा। एक ही मेरा बेटा है। थोड़ा पढ़-लिखकर कोई ठीक-ठाक काम पा जाए, तो मुझे चैन पड़े। कम से कम तब गुजर-बसर की तो मुश्किल न होगी।’ आखिर एक दिन ठुनठुनिया की माँ उसे लेकर गुलजारपुर के विद्यादेवी स्कूल में गई। स्कूल के हैडमास्टर थे सदाशिव लाल। ठुनठुनिया की माँ ने उनके पास जाकर कहा,