निर्वाण--भाग(६)

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बुढ़िया बोली.... मैं और मेरी पोती इस झोपड़ी में खुशी खुशी रहा करते थे,हमारे पास चार पाँच बकरियाँ और एक गाय थी जिनसे हम दोनों का गुजारा हो जाता था,वो गाय के गोबर से उपले बनाती थी और सूख जाने पर मैं उन्हें बेच आती थी,फिर यहाँ इट्टो का नया भट्ठा लग गया,हमारे मुहल्ले पास-पड़ोस की बहुत सी औरतें वहाँ काम करने लगी,मुझे कई औरतों ने सलाह दी भट्ठे में काम करने की,वें कहने लगीं कि कल को पोती का ब्याह करोगी तो मुट्ठी में कुछ रूपया तो होना चाहिए,देखों हम सब भट्ठे में काम करतीं हैं तो अपने खर्चे