साहित्य के शहसवार यशवन्त कोठारी जनाब को मैं तब से जानता हूं, जब मैंने साहित्य मंे अ, आ पढ़ना शुरू किया था। वे पढ़ने में मन्द बुद्धि थे, अतः दसवीं में फेल होकर जिला स्तर पर साहित्य-सेवा करने लगे। मैंने अपनी पढ़ाई जारी रखी। उन्हांेने साहित्य के साथ-साथ राजनीति के फटे मंे भी अपनी टांग अड़ानी शुरू की। इसके परिणाम बड़े सुखद रहे। वे कभी साहित्य की मार्फत राजनीति पर अमरबेल की तरह छा जाते, कभी राजनीति के नीम पर चढ़कर साहित्य रूपी करेले बन जाते। वे तेजी से प्रगति की सीढ़िया चढ़ने लग गए, लेकिन उनकी रचनाएं जिले से