श्रापित रंगमहल--भाग(४)

  • 7.3k
  • 1
  • 4.1k

धूमकेतु के ऐसे आचरण से शाकंभरी विक्षिप्त हो चुकी थी,उसे स्वयं से घृणा हो रही थी,उसे अब अपने भ्राता पुष्पराज की प्रतीक्षा थी कि वो शीघ्र ही राजमहल आकर उसे बंदीगृह से मुक्त कराएगा,जब पुष्पराज को यह सूचना मिली तो वो शीघ्र ही राजमहल पहुँचा अपनी बहन शाकंभरी को मुक्त करवाने हेतु,परन्तु राजा मोरमुकुट ने तो पहले से कोई और ही योजना बना रखी थी, इस योजना के अन्तर्गत उसने पहले ही अपने सैनिकों को अरण्य वन भेजकर अरण्य ऋषि का आपहरण करवा लिया,इधर पुष्पराज राजमहल पहुँचा तो उसे धूमकेतु ने बंदी बनाकर बंदीगृह में डलवा दिया,दूसरे दिन राजदरबार लगा