श्रापित रंगमहल--भाग(३)

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शाकंभरी रात्रि के भोजन की ब्यवस्था करने लगी,उसने कुटिया के कोने पर बने मिट्टी के चूल्हे में भोजन बनाना प्रारम्भ कर दिया,भोजन पक जाने के उपरान्त उसने सभी के लिए पत्तल में भोजन परोसा तो जलकुम्भी बोली.....सखी! मैं तो तुम्हारे संग ही भोजन करूँगी।।जैसी तुम्हारी इच्छा सखी! शाकंभरी बोली।।जलकुम्भी के कहने पर शाकंभरी ने अपने पिताश्री और भ्राता पुष्पराज को भोजन परोसा ,उनके भोजन कर लेने के उपरान्त दोनों सखियों ने भी भोजन कर लिया एवं विश्राम करने हेतु अपने अपने बिछौनों पर लेट गई,परन्तु इधर पुष्पराज की निंद्रा को जलकुम्भी के रूप एवं यौवन ने उड़ा दिया था,वो जलकुम्भी