नाग-पूजा--(प्रेमचंद की कहानी)

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नाग-पूजा (प्रेमचंद) 1 प्रात:काल था। आषढ़ का पहला दौंगड़ा निकल गया था। कीट-पतंग चारों तरफ रेंगते दिखायी देते थे। तिलोत्तमा ने वाटिका की ओर देखा तो वृक्ष और पौधे ऐसे निखर गये थे जैसे साबुन से मैने कपड़े निखर जाते हैं। उन पर एक विचित्र आध्यात्मिक शोभा छायी हुई थी मानों योगीवर आनंद में मग्न पड़े हों। चिड़ियों में असाधारण चंचलता थी। डाल-डाल, पात-पात चहकती फिरती थीं। तिलोत्तमा बाग में निकल आयी। वह भी इन्हीं पक्षियों की भॉँति चंचल हो गयी थी। कभी किसी पौधे की देखती, कभी किसी फूल पर पड़ी हुई जल की बूँदो को हिलाकर अपने मुँह