गहराइयाँ

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१.कुछ गम कुछ गम है मेरी भी जिंदगी में,न हारा हूं न थका हूं,ना जाने क्यों सिर्फ टूटा और बिखरा हूं।कुछ अल्फाज है मेरे जो बयां नहीं हो पाते मुझसे,बस अंदर ही अंदर खुद से रूठा हूं।ना आशिक हूं ना आवारा हूं,बस खफा तो उन रिश्तो से हूं।जो देख नहीं पाते तरक्की मेरी,जो छुरा भोकते हैं पीठ के पीछे,घायल तो वह कुछ करीबियों से हूं।अच्छी नियत वालों की कदर नहीं होती जहां औरबुरी नियत वालों का बोलबाला है जहां,बस उस गंदी राजनीति का हिस्सा नहीं बनना चाहता हूं,शायद इसी लिए ज्यादातर अकेलापन ही पाता हूं।अपनों और परायों कि इस दुनिया