सत्यकाम अपनी बहन त्रिशला के घर से लौट तो आया लेकिन काशी में उसके ठहरने का कोई ठिकाना नहीं था इसलिए उसने सोचा कि यहाँ वहाँ भटकने से तो अच्छा है क्यों ना मैं काशी की किसी धर्मशाला में एक दो दिन ठहरकर कहीं नौकरी ढ़ूढ़ लूँ और नौकरी मिल जाने पर कोई कमरा लेकर उसमें रहने लगूंँगा,बस बहुत हो गया भटकना,शायद मेरे जीवन में अपनों का साथ नहीं लिखा है और फिर यही सोचकर सत्या ने एक धर्मशाला में अपना ठिकाना बना लिया और दो दिनों के भीतर ही उसे एक विद्यालय में अंग्रेजी का अध्यापक भी नियुक्त कर