राह भर बीती रात के ख़यालों में बेतरह उलझी रही वह। ना नींद आई ना आँखें खुलीं। घर आते ही नहा-धोकर बिस्तर पकड़ लिया और लगभग घोड़े बेचकर सो गई। रात दस बजे के लगभग किसी ने ज़ोर से गेट खटकाया तो प्रकाश एकदम डर गया। हालाँकि लीला ने लौटते ही उसे आश्वस्त कर दिया था! पर उसका भय बड़ा पुराना था। मगर लीला को जगाने के बजाय उसने छत पर चढ़कर देखा, दरवाज़े पर उसी का हमउम्र एक लड़का खड़ा था। ‘‘कौ ऽ न?’’ उसने कड़े स्वर में पूछा। ‘‘खोलो, प्रकाश!’’ लड़के ने ऊपर की ओर मुँह फाड़कर जैसे,