स्त्री- विमर्श के मौजूदा दौर का भविष्य

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स्त्री- विमर्श के मौजूदा दौर का भविष्य [ समीक्षाकार -श्री प्रबोध गोविल जी व डॉ प्रणव भारती  जी ] `तर्णेतर ने रे अमे मेड़े ग्याता` शीर्षक से आप ये न समझें कि ये किसी प्राचीन संस्कृति की भूली बिसरी बात है। नीलम कुलश्रेष्ठ की ये बेहद उत्तेजक और खरी - खरी कहानियां उस दौर की झलकियां हैं जो आज उगते सूर्य की तरह क्षितिज पर फैलता दिख रहा है। जब हमने ये भांप लिया कि स्त्री और पुरुष के बीच कार्य का विभाजन, दायित्वों का बंटवारा दोषपूर्ण और अन्याय का पोषक है तो सब जानबूझ कर कुछ न करना अपने