लेकिन मनोज नहीं आ रहा था। दिन तेजी से लुढ़कते चले जा रहे थे। केस बग़ैर राजीनामा के काफ़ी हद तक आगे जा चुका था। नंगे ने पूरा साथ दिया था। उनकी जगह कोई और होता तो जान जोख़िम में डालने के बजाय बयान बदल देता! अब उसकी ख़ुद की गवाही शेष थी, जिसमें ख़ुद रज्जू की शिनाख़्त कर आरोप सिद्ध करना था उसे! भारी घबराहट हो रही थी...। जैसे-तैसे नींद आती तो सपने में कभी छुन्ना तो कभी रज्जू गोली खाकर गिर पड़ता। और कभी तमाम अपरिचित लोग एक साथ इन दोनों की गोलियों के शिकार हो जाते। लेकिन