अपंग - 15

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15---- जीवन की कठोर वास्तविकता यह है कि हँसी-ख़ुशी का समय पँख लगाकर जाने किस पुरवाई के साथ निकल लेता है लेकिन तकलीफ़ का, पीड़ा का, अकेलेपन का समय जैसे वहीं ठहर जाता है, धुंध भरे रास्तों में न जाने कहाँ छिपा लेता है समय अपने आपको, फिर उसमें से निकलकर कभी भी आ खड़ा होता है सामने जैसे हमें चिढ़ाना चाहता हो | उस घटना के बाद भानुमति बिलकुल अकेली रह गई थी, एकाकी ! तन और मन दोनों ! स्वयं को सँभालने में असमर्थ पाती हुई सी ! पैट, पत्नी दोनों की मन:स्थिति इतनी तनावपूर्ण हो चुकी थी