लीला - (भाग-15)

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उसने लजाकर कनखियों से देखा उसे। मगर वह तो ख़ुद वाक़ये से अनजान-सा अपलक स्क्रीन पर नज़रें टिकाए हुए! तब वह उसकी चौड़ी छाती, मांसल भुजाएँ, मोटी-मोटी जाँघें और गोलमटोल मुखड़ा बड़ी ठहरी निगाहों से निरखने लगी...। आइसक्रीम निबटाने के बाद गहने, जैसे, विहँसते हुए उतार कर दराज में रख दिए। मगर बेख़ुदी में श्वेत मोतियों की माला गले में पड़ी रह गई! अजान उसकी चमक आँखों में भर मंद-मंद मुस्कराया, ‘आज इसे नाहक तुड़वाओगी-तुम!’ पर वह नादाँ उस गूढ़ मुस्कान का भेद नहीं जान पाई...सोने-सा पिघलता बदन लिये उसकी बग़लगीर हो रही! तब सिरहाने की ओर हाथ बढ़ा बेडस्विच