लीला - (भाग-10)

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अंत में अजान सिंह ने उसके हाथ ऐसे चूम लिये, जैसे, सतफेरी नारि...! अब क्या संकोच रह गया...? पर पसरट्टा पसरा था, जिसे समेटना था उन्हें...। ज़्यादातर मेहमान चले गए पर मौसिया सास, माईं और एक दूर के रिश्ते के कक्का और सगा भाई रुक गए थे। आधी रात तक वे लोग समेटा-समाटी में लगे रहे। चाचा का परिवार भी लगा था। कारज का काम! पसर तो हाल जाता है, समिटता नहीं है जल्दी! बड़े-बड़े बर्तन-भाँड़े उन्होंने इकट्ठे करके एक ठौर पर जमा कर दिए थे। उनकी माँजा-धोई चल रही थी। बची हुई तरकारियाँ टूला में बँटवा दी थीं। गर्मी