किसी भी काम को करने या ना करने के पीछे हर एक की अपनी अपनी वजहें..अपने अपने तर्क..कुतर्क हो सकते हैं। साथ ही यह भी ज़रूरी नहीं कि हमारे किए से दूसरा भी हमारी ही तरह सहमत हो या हम भी दूसरे के किए से उसी की तरह इत्फ़ाक रखते हों। अपनी अपनी जगह सभी खुद को सही और दूसरे को ग़लत समझते हैं। जैसे कि अगर रामायण का उदाहरण लें तो जो श्रूपनखा के साथ लक्ष्मण ने किया, उसे लक्ष्मण ने सही माना जबकि शूर्पणखा ने ग़लत या फिर रावण ने सीता का हरण करते वक्त खुद को सही