ऐसे ही दिन बीतने लगे। कभी अमायरा रुकती हॉस्पिटल में अपनी मॉम के पास तोह कभी इशिता रुकती। दोनो खूब ध्यान रख रहे थे अपनी मॉम का। कबीर भी अमायरा को पीछे से साइलेंट सपोर्ट दिए हुए था जिसकी उस बहुत ज्यादा जरूरत भी थी। यह पहली बार था इतने सालों में की अमायरा ने यह महसूस किया था की कोई तोह है उसके साथ, जो उसे सपोर्ट करता है, और उससे कुछ एक्सपेक्ट भी नही करता बिना किसी चीज़ के बदले। उसने सोच लिया था की वोह उसके लिए कुछ खरीदेगी, उन्हे थैंक यू कहने के लिए, एक थैंक