गुनाहगार (पार्ट 2)

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"तो बाहर घूम आया करो।""कहाँ?माया ने प्रश्न सूचक नज़रो से पति को देखा था।"जहां भी तुम्हारे जाने का मन करे""अकेली?"पति कज बात सुनकर माया बोली थी।"औरत अंतरिक्ष मे जा पहुंची है और तुम?यह तुम्हारे मायके का कस्बा नहीं है।यह मुम्बई है।यहां की औरते अकेली कहीं भी आ जा सकती है।और तुम पढ़ी लिखी हो।फारवर्ड बनो।घर से अकेली बाहर आने जाने की आदत डालो।शुरू में अटपटा लगेगा लेकिन फिर आदत पड़ जाएगी।"माया ने पति को अपने अनुसार बदलने की हर तरह से कोशिश की।पर वह ऐसा नही कर पायी।तब उसने अपने को ही बदल डाला।उसने अपने को पति के विचारों चाहत