लेखक: शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय सात दिनों तक ज्वरग्रस्त रहने के बाद ठाकुरदास मुखोपाध्याय की वृद्धा पत्नी की मृत्यु हो गई. मुखोपाध्याय महाशय अपने धान के व्यापार से काफ़ी समृद्ध थे. उनके चार पुत्र, चार पुत्रियां और पुत्र-पुत्रियों के भी बच्चे, दामाद, पड़ोसियों का समूह, नौकर-चाकर थे-मानो यहां कोई उत्सव हो रहा हो. धूमधाम से निकलनेवाली शव-यात्रा को देखने के लिए गांववालों की काफ़ी भीड़ इकट्ठी हो गई. लड़कियों ने रोते-रोते माता के दोनों पांवों में गहरा आलता और मस्तक पर बहुत-सा सिंदूर लगा दिया. बहुओं ने ललाट पर चंदन लगाकर बहुमूल्य वस्त्रों से सास की देह को ढंक दिया और अपने