"हजबां" - प्रबोध कुमार गोविल तेज़ धूप थी। हेलमेट सुहा रहा था। क्या करें, कोई सरकारी नौकरी होती तो अभी आराम से सरकारी बिल पर चलते एसी में उनींदे से बैठे होते। या फ़िर घर का कोई व्यापार ही होता तो तेज़ धूप का बहाना करके फ़ोन से कर्मचारियों को काम समझा कर घर में ही बने रह जाते। पर यहां तो घर का एक छोटा सा अख़बार था जिसके लिए सर्दी,गर्मी, बरसात हर मौसम में प्रेस में ही जाकर बैठना पड़ता था। तभी जाकर दाल रोटी निकल पाती थी। मैं बाइक के पास खड़ा अभी हेलमेट को कस ही